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वर्टिगो

वर्टिगो घूमने का एक अहसास या असंतुलन की अनुभूति है। वर्टिगो यानि चक्कर में इंसान एक जगह खड़ा रहता है, लेकिन उसे लगता है कि वो गोल घूम रहा है या उसे अस्थिरता का अनुभव होता है।

चक्कर आना - तीन प्रकार का होता है :-
  • आॅब्जेक्टिव’ - इसमें व्यक्ति को यह महसूस होता है कि सभी वस्तुएं घूम रही है।
  • ’सब्जेक्टिव’ - इसमें व्यक्ति को यह आभास होता है कि वह स्वयं घूम रहा है।
  • ’स्यूडो वर्टाइगो’ - इसमें व्यक्ति को सिर के अन्दर घूमने का आभास होता है।

वर्टिगो शरीर में विकार का लक्ष्ण है। वर्टिगो को कुछ लोग अधिक उंचाई पर जाने का डर समझते हैं, लेकिन इस बीमारी को एक्रोफोबिया कहते हैं, यह वर्टिगो से सम्बन्धित नहीं है। चक्कर आने की परेशानी यदि वास्तविक है तो भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है और व्यक्ति अपना आत्मविश्वास खो सकता है।

वर्टिगो से सभी आयु वर्ग के व्यक्ति (पुरूष एवं महिलाएं) सामान्य रूप से प्रभावित हो सकते हैं। हकीकत में 20 से 40 फीसदी लोग अपने जीवन के किसी भी क्षण डीजीनेस यानि सिर चकराने से पीड़ित होते हैं ।

वर्टिगो के कई कारण हो सकते हैं जैसे बीपीपीवी, मेनीयर्स डिजीस, वेस्टीब्यूलर न्यूरीटाईस, लेब्रिन्थटिक्स, एक्यूस्टिक न्यूरोमा, ओटोलिथ डिसफंक्शन, वेस्टब्यूलर माईग्रेन, सेन्ट्रल वेस्टीबलोपैथी जैसे स्ट्रोक ब्रेनहेमरेज या सायकोजोनिक डिसआर्डस। वर्टिगो या चक्कर का निदान करके सही ईलाज से ठीक किया जा सकता है। इन सभी बीमारियों का उपचार अलग अलग तरीकों से किया जाता है। सही निदान व उपचार के बाद ही रोगी को स्थाई लाभ मिल सकता है।

चक्कर आने के लक्षण:- चक्कर के मरीज इस प्रकार से अपने लक्षणों का वर्णन कर सकते है:-
  • चक्कर आना।
  • अस्थिर या असंतुलित होना।
  • गिरने का अहसास।
  • सिर घूमना।
  • जी मिचलाना या उल्टी।

चक्कर के साथ इस प्रकार के लक्षण भी पाये जा सकते हैं:-

चक्कर के साथ इस प्रकार के लक्षण भी पाये जा सकते हैं:-
  • पसीना आना।
  • कम सुनाई देना।
  • कान में आवाजें आना।
  • सिर दर्द होना।

 

बीपीपीवी:-

बिनाइन परओक्सिमल पोजिशनल वर्टिगो (बीपीपीवी) कान के भीतरी हिस्से में होने वाला विकार है। शरीर की स्थिति बदलने करवट लेने के साथ वर्टिगो का बार बार होना इसका मुख्य लक्ष्ण है।

  • बिनाइन का अर्थ हैं कि ना तो यह गंभीर हैं और न ही प्राणघातक।
  • परओक्सिमल अर्थात लक्षणों की एकाएक होने वाली घटनाएं।
  • पोजिशनल अर्थात स्थिति के कारण लक्षणों का उभरना या शुरू होना।
  • वर्टिगो अर्थात चक्कर आना, घूमने की अनुभुति।

सिर का चक्कर आमतौर पर विडियो निस्टैगमों ग्राफी परिक्षण से स्थिति को मार्गदर्शित किया जाता है। और भीतरी कान में फंसे कणों की स्थिति देखने के बाद ही इसका ईलाज किया जाता है। इसमें दवाईयों से फायदा नहीं होता है।

मेनीयर्स रोग:-

यह कान के आंतरिक भाग का विकार है जो संतुलन और सुनने को दुष्प्रभावित करता है। इसमें तीन लक्षण एक साथ परिलक्षित होते हैं - चक्कर आना, कान में आवाज आना, सुनना कम हो जाना। यह भीतरी कान में तरल पदार्थ के बढ़ते हुए दबाव के कारण होते है। अगर समय पर ईलाज नहीं किया जाय तो मेनीयर्स रोग से सुनवाई की हानि हो सकती है। इसका ईलाज खानपान में बदलाव, दवाई व कान में जेंटामाईसिनइजेक्शन लगाने से किया जाता है। जब सामान्य ईलाज से चक्कर पर काबू नहीं पाया जाता है तो संतुलन की नस का आॅपरेशन करना पड़ सकता है।

वेस्टिब्यूलर न्यूराईटिस:-

यह एक वायरल संक्रमण होता है जिससे संतुलन की नस प्रभावित होती है। ऐसे मरीजों में चक्कर कई घण्टों से लेकर कई दिनों तक रहता है। संतुलन की नस की क्षमता को सामान्य बनाए रखने के लिये समय पर कसरत एवं उपचार करना जरूरी होता है।

माईग्रेन वर्टिगो:-

इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को सिरदर्द के साथ चक्कर या असंतुलन की तकलीफ होती है। यह सभी उम्र के लोगों में पाया जा सकता है, लेकिन 20-40 वर्ष की उम्र के लोगों में अधिक मिलता हैं। इन रोगियों को आमतौर पर सुनाई की समस्या नहीं होती। ये अक्सर तेज आवाज और चकमदार रोशनी को सहन नहीं कर पाते हैं। इन्हें डाॅक्टर की सलाह अनुसार दवाई लेनी चाहिये। संतुलित आहार, और पर्याप्त नींद लेने से इस रोग पर कुछ हद तक काबू पाया जा सकता है। दवाई से चक्कर व सिरदर्द कम किये जा सकते हैं।

आॅटोलिथिक विकार:-

इस रोग में मरीज को खड़े रहने में परेशानी होती है और असंतुलन का अहसास होता है। डाॅक्टर की सलाह अनुसार सब्जैक्टिव विजुअल वर्टीकल टेस्ट एवं वीईएमपी परीक्षण से इस रोग का पता लगाया जा सकता है। इस बीमारी में व्यक्ति को निरन्तर असंतुलन का अहसास या बार बार धक्का लगने की अनुभूति होती है। कभी कभी स्थिर खड़े रहने में भी परेशानी होती है। इसका उपचार तंत्रिका तंत्र की संवेदनशीलता को कम करने के लिये दवा के साथ आॅटोलिथ विकारों के लिये विशेष पुनर्वास कार्यक्रम में शामिल किया जाता है।

लाब्रिनिथिटक्स:-

इस रोग में जीवाणु संक्रमण संतुलन नस को प्रभावित करता है जिससे एक कान में अचानक कम सुनाई देने के साथ साथ तेज चक्कर आते हैं। इसके लक्षणों में कान का भारीपन, कम सुनाई देना, कान में आवाजें आना व कुछ दिन के चक्कर सम्मिलित हैं। इसका शीघ्र एवं सही उपचार किया जाए तो सुनाई की क्षति से बचा जा सकता है। विशेष प्रकार के व्यायामों से इस रोग पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

वेस्टिब्यूलर परोक्सिमिया:-

इसमें थोड़ी थोड़ी देर में तेज चक्कर एवं असंतुलन का आभास होता है। यह हडडी के अन्दर संतुलन की नस के दबाव के कारण होता है। यह संतुलन की नस पर दबाव के कारण होता है। स्पाॅन्टेनियस न्यासिटमग्स विद हायपरवेंटिलेशन, वेस्टिब्युलर परोक्सिमिया के निदान के लिये उच्च स्तर पर सुझाया गया है। 95 प्रतिशत स्थिति का निदान एम आर आई द्वारा किया जा सकता है। शुरू में चिकित्सा प्रबन्धन कार्बोमेजिपीन या आॅक्सार्बमेजिपाईन द्वारा किया जा सकता है। इस पर नियंत्रण अगर दवाईयों से संभव नहीं हो तो ऐसे में सर्जीकल माईक्रोवेस्कुलर डिकम्प्रेशन आॅफ द वेस्टिब्युलर नर्व किया जा सकता है। इससे संतुलन की नस को दबाव से मुक्त किया जा सकता है।

आॅक्योस्टिक न्यूरोमा:-

यह संतुलन की नस में एक गांठ के रूप में होता है जिसके कारण अस्थिरता बढ़ती है और एक कान से कम सुनाई देने की समस्या एवं कानों में आवाजें आने लगती हैं । यह टयूमर या गांठ आमतौर पर धीमी गति से बड़ा होता है। इसका निदान आॅडियोलोजिकल टेस्ट जैसे प्योर टोन आॅडियोमीटरी एंव एबीआर, वेस्टिब्यूलर टेस्ट और एमआरआई हैं।

मालडी डिबारकमेंट सिंड्रोम (एमडीडीएस):-

इसमें मरीज को ऐसा अनुभव होता हैं जैसे वह एक नाव या फोम पर चल रहा हो। यह प्रायः लम्बी उड़ान या नाव की लम्बी यात्रा के बाद होता है। महिलाओं में यह रोग पुरूषों की अपेक्षा ज्यादा रहता है। कार में बैठने या कार चलाने से इस रोग के लक्षण अस्थाई रूप से कम हो जाते हैं। इन रोगियों को आॅप्टोकायनिटीक विज्युअल स्टिमुलेशन एवं विशिष्ट पुर्नवास कार्यक्रम में शामिल करने से फायदा मिलता है।

पेरीलिम्फ फिस्टूला:-

इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को कम सुनाई देना, कान में भारीपन और चक्कर महसूस होतेे हैं या भीतरी कान में भरी तरल और बाहय कान में भरी हवा के तरल पदार्थ, मध्य कान के पेरीलिम्फ तरल पदार्थ रिसकर मध्य कान में प्रभावित होते हैं। खांसने, छींकने व भारी वजन उठाने पर इसके लक्षण बढ़ जाते हैं। लेकिन यह डाईविंग के दौरान, उड़ान में या प्रसव के दौरान दबाव में अचानक परिवर्तन से होता है। इसका ईलाज रोगी के इतिहास पर निर्भर करता है। इसका उपचार दूरबीन से आॅपरेशन से किया जाता है। आॅपरेशन के बाद मरीज को कुछ दिन के लिये बिस्तर पर आराम की सलाह दी जाती है।

ACOUSTIC NEUROMA:-

Acoustic Neuroma, जिसे Vestibular Schwannoma भी कहते हैं, Vestibulocochlear नलिका में धीरे–धीरे बढ़ने वाली कैंसरमुक्त गाँठ होती है । यह नलिका श्रवण एवं संतुलन सम्बन्धी आवेगों को कान से दिमाग तक संचालित करती है । हाल ही में प्रस्तावित किया गया है कि Acoustic Neuroma के मरीज़ों के 22वें क्रोमोसोम के जीन ख़राब होते हैं । यह जीन एक खास तरह का ट्यूमर निरोधी प्रोटीन बनाता है, जो कि schwan कोशिकाओं को बढ़ने से नियंत्रित करता है । ये ट्यूमर (गाँठ) schwan कोशिकाओं से बनती है, जो स्नायु तंत्र को ढकता है । [Read More..]

Multiple Sclerosis:-

Multiple Sclerosis केंद्रीय स्नायुतंत्र (Central Nervous System) को प्रभावित करने वाली एक demyelinating बिमारी है । इसका अपना स्व-प्रतिरक्षक स्त्रोत होता है जिसमें शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र स्वयं अपनी स्नायु तंत्रिकाओं की Myelin परत पर आक्रमण कर देता है । Myelin Sheath तंत्रिका का रक्षात्मक आवरण होता है, जिससे तंत्रिका चालन में मदद मिलती है । इस परत के क्षतिग्रस्त होने पर तंत्रिका चालन अवरुद्ध हो जाता है, जिसकी वजह से कई प्रकार के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं । [Read More..]

Superior Semi Circular Canal Dehiscence:-

Superior Semi Circular Canal Dehiscence or SSCD नामक अवस्था की हाल ही में पहचान की गई है । पहली बार इसका ज़िक्र Lloyd Minor द्वारा 1998 में किया गया था । इस अवस्था में कान का अंदरूनी भाग प्रभावित होता है, जिससे auditory (श्रवण-संबंधी) एवं vestibular (कर्ण-कोटर संबंधी) लक्षण उत्पन्न होते हैं । ऐसा superior semi-circular canal (पार्श्व अर्धवृत्ताकार नलिका) में हड्डी के दोष की वजह से होता है, जिससे inner ear एवं middle cranial fossa के बीच एक स्थान बन जाता है । इस तरह के असामान्य संचार की वजह से ध्वनि तरंगो का संचारण अंदरूनी कान के द्वारा होने लगता है जिससे vertigo, असंतुलन, गिरना, श्रवण शक्ति ख़त्म होना, ध्वनि के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता, आदि लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं । Oscillopsia अर्थात् तेज ध्वनि की वजह से ऊपर-नीचे हिलने जैसा एहसास, SSCD का विशेष लक्षण होता है । इस लक्षण को Tullio’s phenomenon कहा जाता है । [Read More..]

Tinnitus:-

Tinnitus एक प्रकार की बीमारी होती है जिसमें मरीज़ को कई प्रकार की ध्वनि का एहसास होता रहता है, जैसे घंटी बजना, भिनभिनाहट या फुफकारने की ध्वनि, आदि । Mc Fadden ने ध्वनि को सचेतावस्था ध्वनि के रूप में परिभाषित किया है, जो मरीज़ के सिर में ही उत्पन्न होती है, वो भी किसी बाहरी स्त्रोत के बिना । ऐसी ध्वनि एक या दोनों कान में सुनाई दे सकती है, हालाँकि मरीज़ को कई बार भ्रम होता है की यह ध्वनि उसके सिर से आ रही है । [Read More..]

Vestibular Paroxysmia:-

इस अवस्था में मरीज़ बार बार होने वाले Vertigo से ग्रसित रहता है । ऐसा संतुलन बनाये रखने वाली Vestibular नलिका के संकुचन के कारण होता है । [Read More..]

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